Tuesday, July 26, 2011

Gurupurnima Mahotsav.avi

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www.bsnlnewsbyashokhindocha.blogspot.com M-09426254999

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Friday, July 15, 2011

Tuesday, July 5, 2011

Lohana | RajkotSamachar.Com

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Monday, July 4, 2011

Will Power-information by Ashok Hindocha M-094262 01999

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*****संकल्‍प शक्ति*****











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विश्‍व में जितनी भी शक्तियां है उनमें सबसे बड़ी व्‍यापक शक्ति है संकल्‍प की । संकल्‍प का अर्थ है मस्तिष्‍क और ह्रदय दोनों की सम्मिलित क्रिया । पशु विचार करते समय स्‍वयं को न अतीत से जोड़ता है और न भविष्‍य से इसलिये उसे न पश्‍चाताप होता है और न कामनाएं कल्‍पनाएं उसे न असंतोष होता है और न संतोष मनुष्‍य स्‍वयं को बदलना चाहता है इसलिये उसे कोई उपाय चाहिये उस उपाय का नाम है संकल्‍प शक्ति ।





आज तक मनुष्‍य ने जितना विकास किया है यह इसी बल के सहारे किया है मानव से महा मानव इन्द्रिय जगत से अतिन्द्रिय जगत की यात्रा का माध्‍यम यही है इस शक्ति से केवल जड़ को चेतन नहीं बनाया जा सकता शेष सभी कार्य सम्‍पादित किये जा सकते हैं । संकल्‍प विचार की सधनता का नाम है विचार कर तरलता संकल्‍प से जम जाती है संकल्‍प शक्ति एक प्रकार की शासक शक्ति है जो जड़ और चेतन दोनों पर शासन करती है निकट और दूर दोनों आकाश को बांधती है शत्रु और मित्र दोनों को रुपातीत करती है ।





संकल्‍प इन्द्रिय और अतीन्द्रिय दोनों से संबंध रखने वाली शक्ति है एक संकल्‍प मन को चलाता है और एक संकल्‍प मन को थामता है । रुस के एक वैज्ञानिक ने लिखा है हमारे भीतर साईकोइलेक्‍ट्रोनिक्‍स अर्थात ऊर्जा का जगत है इस ऊर्जा शक्ति को घटाया बढ़ाया जा सकता है हम बहुत बार एैसी कहानियां सुनते हैं कि कागज का एक टुकड़ा टिकट बन गया कांटे फूल बन गये बर्फ से छाले पड़ गये और आग से शरिर ठंडा यह सब जादू नहीं हमारी संकल्‍प शक्ति का प्रभाव है ।





संकल्‍प और एकाग्रता





संकल्‍प एक विचार है । जब तक चित्‍त एकाग्र नहीं होता तब तक कोई संकल्‍प साकार नहीं होता । जिधर संकल्‍प जाता है उधर प्राण चेतना स्‍वत: सक्रिय हो जाती है । संकल्‍प के घर्षण से प्राण में एक प्रकार का विद्युतीय प्रवाह उत्‍पन्‍न होता है जो लक्ष्‍य बिंदु पर केन्द्रित होकर व्‍यक्ति की मनोकामना पूर्ण करता है । मंत्र विद्या पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है , कम आव्रति वाली तरंगों से महान ऊर्जा वाली तरंगे शांत होती है । तरंग जो नया जीवन, नया उत्‍साह प्रदान करती है । इसके विपरीत अल्‍ट़्रासोनिक एक तरंग है (तेज आव्रति वाली) जो विनाश करती है । किन्‍तु जब हम शुभ संकल्‍प की स्थिति में होते हैं तब निर्माणकारी तरंगें ही पैदा होती है, विनाशकारी नहीं । हमारा संकल्‍प हमारा शत्रु है और हमारा मित्र भी । मैं अंघकार में हॅू, मेरा भविष्‍य खतरे में है , मैं असफल यात्री हॅू एैसा सोचने वाा बिना किसी वर्तमान संभावना के ऐसा बन जाता है । पिफर क्‍यों नहीं हम अच्‍छे संकल्‍प करें ।





चुंबक कभी चुंबक को प्रभावित नहीं कर सकता किंतु विचार प्रभावीकरण की प्रक्रिया इसके विपरीत है । बुरे विचार बुरे विचार तरंगों को अपनी और खींचते है और अच्‍छे विचार अच्‍छी विचार तरंगों को । जो संकल्‍प चेतन मन को छूकर रुक जाता है वह अपनी क्रियान्विति नहीं कर सकता । वह भाषा जगत तक जाकर रुक जाता है जबकि उसे भाव जगत तक जाना चाहिए था । संकल्‍प को भीतरी तल तक ले जाने के लिये चाहिए एकाग्रता, निर्विचारता । पवित्र मन वाले व्‍यक्ति का संकल्‍प कल्‍पव़क्ष की तरह फलदायी होता है और जिस वस्‍तु की हम दिल से मांग करते है, वह बंद दरवाजे को खोलकर हमारे घर में चली आती है ।





संकल्‍प क्‍यों करे





मनुष्‍य अनंत जन्‍मों से यह सोचता चला आ रहा है कि मुझे अमुक साधना से स्‍वयं को बदलना है, वास्‍तविक सुख को प्राप्‍त करना है, किंतु आज तक हुआ नहीं, क्‍योंकि संकल्‍प शिथिल हो गया, चेतना प्रवाहपाती हो गई । अब फिर से उस अवस्‍था में आना है इसलिये संकल्‍प करें --





1- शिक्षा, साधना, स्‍वभाव - परिवर्तन तथा अतीन्द्रिय क्षमताओं के कारण जागरण के लिये ।

2- मेरे भीतर वह सब है जो एक पूर्ण विकसित चेतना में होता है, इस विश्‍वास को साकार करने के लिये ।

3- स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के लिए ।





'ओटोजेनिक चिकित्‍सा पद्वति का आज बहुत जोरों से प्रचार प्रसार हो रहा है । अनुप्रेक्षा इसी पद्वति का पर्याय वाचक है ।





राजा बहुत चिन्तित था, क्‍योंकि राजकुमार कुबड़ा हो गया । अब क्‍या किया जाये, किसी अनुभवी व्‍यक्ति ने बताया कि यदि राजकुमार एक साल तक एक सपाट सीधी लकड़ी के सामने खड़ा होकर यह भावना करे कि ठीक ऐसा ही सीधा सरल मेरा शरीर होता जा रहा है । उसने प्रयोग किया और प्रयोग सफल हुआ । राजकुमार स्‍वस्‍थ हो गया । इस संकल्‍पशक्ति के द्वारा असाध्‍य बीमारियों का इलाज किया जा सकता है ।





संकल्‍प की भाषा विधि





संकल्‍प शक्ति के विकास का साधन है -- व्रत यानी त्‍याग । त्‍याग की सम्‍पूर्ण साधनाप व्रत जागरण की साधना है , क्‍योंकि संकल्‍प की तरंग से असाक्ति की तरंग टूटती है । हम इस और प्रस्‍थान करें ---





1- मैं एैसा करके रहूंगा ।

2- एैसा होकर रहेगा ।

3- मुझे कोई रोक नहीं सकता ।

4- वाक्‍य लयबद्व मंद श्‍वास के साथ घीरे घीरे चले ।

5-संकल्‍प की भाषा बदले नहीं । जब तक चित्‍त पूरा एकाग्र नहीं हो जाए तब तक संकल्‍प दोहराते जायें ।

6- संकल्‍प विधायक जीवन निर्माणकारी होने चाहिये ।

7- अधूरे शिथिल मन से किये गये संकल्‍प कभी पूरे नहीं होते ।

8- निष्‍ ठा, प्रयोग और एकाग्रता जीनों जहां तक साथ मिलते है वहां कोई कार्य पूर्ण नहीं रहता ।

9- कुछ लोग संकल्‍प तो करते हैं मगर बार बार पुनरावर्तन नहीं करते । पुनरावर्तन से शक्ति पैदा होती है और नये चित का निर्माण होता है । समस्‍या के गर्भ से समाधान निकल आता है ।





यद्यपि मन की रचना सरल और जटिल दोनों ही प्रकार की होती है जिन्‍हें रुग्‍ण मनोरचना के कारण दु:ख भोगना पड़ रहा है, वे अवश्‍य मंगल संकल्‍प साधना से भारी फायदा उठा सकते है । अपेक्षा है मन को रोज शुद्ध करने की ।





1- मैं आज से सदा प्रसन्‍न मिजाज रहुंगा

2- मैं किसी भी परिस्थिति में स्‍वास्‍थ्‍य की उपेक्षा नहीं करुंगा

3- मैं साथ रहने वाले के साथ अनुकूल भाव रखूंगा

4- मैं उत्‍तेजना के अवसरों पर मौन रहूंगा

5- मैं आज की समस्‍या आज ही सुलझाऊंगा

6- मैं एकाग्रता के विकास हेतु रोज अश्रयास करुंगा

7- मैं शांत एवं पवित्र जीवन के प्रति जागरुक रहूंगा

8- मैं खान पान में शुद्वता रखूंगा

9- मैं एक साथ एक ही संकल्‍प करुंगा





गहरे कार्योत्‍सर्ग में प्रवेश करके 6 माह तक निरंतर एक संकल्‍प का अभ्‍यास करना चाहिए । चित्र जितना स्‍पष्‍ट होगा उतना ही परिणाम जल्‍दी आ सकेगा ।





संकल्‍प क्‍यों टूटते हैं





मनुष्‍य सब चीजों की सुरक्षा जानता है किंतु अपने संकल्‍पों को नहीं जानता । सुबह संकल्‍प करता है और शाम को तोडुता है क्‍योंकि हमारी चेतना कभी जोती है और कभी सोती है । जागत चेतना संकल्‍प करती है और मूर्च्छित चेतना तोड़ती है । मूर्च्‍छा का मुख्‍य कारण है - चंचता । यह बढ़ती है इन्द्रियों की लोलुपता से जिन्‍हें संकल्‍प को जीवित रखना है उनको तीन बातों का अभ्‍यास करना चाहिये ---





1- इन्द्रियों की लोलुपता को कम करें

2- प्रतिकूलता, कष्‍ट के समय संकल्‍प को न छोड़े

3- किये गये संकल्‍प का रोज पुरावर्तन करें । संभव है मन की चंचलता उसे तोड़ दे । एकाग्रता बढ़े ऐसे प्रयोग चालू रहने चाहिये





फलित की भाषा में कहा जा सकता है, इन्द्रियों और मन के अनुशासन द्वारा ही संकल्‍प शक्ति का विकास हो सकता है, शेष सारे प्रयोग सहयोग करने वाले हैं ।